कड़वे बोल न बोलिये

कड़वे बोल न बोलिये
कड़वा क्या रस होए
ताँबा पहन के आये
कया सोने सा होए
कया सोने सा होए
ये जुगती है जगत की
जो जागे क्या सोए
आँख मिलाये कया होए
दिन में जो तू सोए
दिन में जो तू सोए
बात न बढ़-चढ़ कर करे
धीरे धीरे होए
ये जग बोली राम की
मेरी बात न होए
मेरी बात न होए
एसा वक्ता बन पढ़े
जैसा वकता होए
जैसे कस्तूरी छिपे
मृगशाला में न कोये
मृगशाला में न कोये
Dr. Baljit Singh
Sunday 26th November 2017

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